यह रही एक नई और मौलिक हिंदी कहानी जो मनोरंजक भी है और एक सुंदर संदेश भी देती है:
कहानी का नाम: “खाली डब्बा”
पात्र:
- रीमा – एक होशियार और दयालु बच्ची
- मिसेज़ वर्मा – स्कूल की प्रिंसिपल
- रीमा की माँ – एक साधारण गृहिणी
कहानी:
रीमा एक मध्यमवर्गीय परिवार की होशियार बच्ची थी। वह पाँचवीं कक्षा में पढ़ती थी और पढ़ाई में बहुत तेज़ थी। उसके स्कूल में हर साल “श्रेष्ठ छात्र पुरस्कार” दिया जाता था। इस बार भी वह नामांकन में सबसे आगे थी।
पुरस्कार समारोह वाले दिन सभी बच्चों को कुछ न कुछ उपहार या मिठाई स्कूल लाने को कहा गया ताकि सभी एक-दूसरे के साथ बाँट सकें।
रीमा की माँ के पास ज़्यादा पैसे नहीं थे, पर उन्होंने बड़ी मेहनत से रीमा के लिए टिफ़िन में बेसन के लड्डू रखे।
स्कूल में बच्चों के टिफ़िन भरे हुए थे – चॉकलेट, कुकीज़, नमकीन, केक। लेकिन रीमा का डिब्बा सबसे सादा था – बस चार लड्डू।
समारोह शुरू हुआ, और जब रीमा का नाम “श्रेष्ठ छात्र” के रूप में लिया गया, तो सबने तालियाँ बजाईं।
प्रिंसिपल मिसेज़ वर्मा ने रीमा से कहा, “बेटा, तुम बहुत मेहनती हो। अब बताओ, क्या तुम अपने दोस्तों को मिठाई बाँटोगी?”
रीमा मुस्कराई और बोली, “जी हाँ।”
वह डिब्बा लेकर खड़ी हुई… लेकिन जैसे ही उसने उसे खोला, वह खाली था। कोई पहले ही उसके लड्डू खा चुका था।
सभी बच्चे हँसने लगे। रीमा की आँखों में आँसू आ गए, पर उसने कुछ नहीं कहा।
मिसेज़ वर्मा ने बच्चों को चुप कराया और बोलीं,
“रीमा, क्या तुम फिर भी अपने खाली डब्बे को दोस्तों में बाँटना चाहोगी?”
रीमा ने कहा,
“मैम, मेरे पास मिठाई नहीं, पर मैं खुशी बाँट सकती हूँ। मैं अपने हर दोस्त को एक मीठी मुस्कान दूँगी।”
सारा हाल तालियों से गूंज उठा।
उस दिन मिसेज़ वर्मा ने कहा,
“रीमा ने हमें सिखाया कि बाँटना सिर्फ वस्तुएँ नहीं, भावनाएँ भी हो सकती हैं।”
शिक्षा:
सच्ची महानता चीज़ों में नहीं, नियत और व्यवहार में होती है। खुशी बाँटने के लिए मिठाई की नहीं, दिल की मिठास की ज़रूरत होती है।
अगर आप चाहें तो मैं इस कहानी का अगला भाग भी लिख सकता हूँ या इसी तरह की और नई कहानियाँ भी बना सकता हूँ – बच्चों के लिए, सामाजिक संदेश वाली या प्रेरणात्मक। बताइए!